मर्ज़ हूँ मैं या तेरी दवा
कैद में मेरी, ए मेरे खुदा,
दर्द में तेरे साथ रहूं
या कर दू तुझे दिल से रिहा ?
रूह में मेरी बसा है तू
जैसे इत्र में घुली फ़िज़ा !
जुदा होना देगा क्या सुकून,
या बन जाएगी एक सजा ?
जो भूल गई तुझे किसी दिन
खुद से हो जाउंगी खफा !
तेरी ख़ुशी ही फिर भी होगी
मेरी दुआओं में हर दफ़ा !
दर्द में तेरे साथ रहूं
या कर दू तुझे दिल से रिहा