भीड़ में शायद तनहा जी रही थी मैं ,
मुझको मुझ से मिलाने आए हो तुम!
हज़ारों में हो एक, फिर भी चुना कहाँ मैंने,
तोहफ़ा बनके जिंदगी का, जिंदगी से मिलवाने आए हो तुम !
अधूरे ख़्वाबों में भी ख़ुश सी थी मैं ,
सपनें मेरे साकार करवाने आये हो तुम !
परछाई नहीं आइना हो, मुझ में छुपी ,
हर खूबसूरती दिखाने आये हो तुम !
बेइन्तिहाँ मुहोबत्तें की हैं, मगर इस बार ,
खुद से ही इश्क़ में डुबो देने आये हो तुम !
यूँ तो कोई कमी नहीं थी , फिर भी ,
मुझसे ही मुझे पूरा करने आए हो तुम।
--हिना