भीड़ में शायद तनहा जी रही थी मैं ,
मुझको मुझ से मिलाने आए हो तुम!
हज़ारों में हो एक, फिर भी चुना कहाँ मैंने,
तोहफ़ा बनके जिंदगी का, जिंदगी से मिलवाने आए हो तुम !
अधूरे ख़्वाबों में भी ख़ुश सी थी मैं ,
सपनें मेरे साकार करवाने आये हो तुम !
परछाई नहीं आइना हो, मुझ में छुपी ,
हर खूबसूरती दिखाने आये हो तुम !
बेइन्तिहाँ मुहोबत्तें की हैं, मगर इस बार ,
खुद से ही इश्क़ में डुबो देने आये हो तुम !
यूँ तो कोई कमी नहीं थी , फिर भी ,
मुझसे ही मुझे पूरा करने आए हो तुम।
--हिना
A deep and lovely poem. Very well written. Loved it! Looking forward for more.
ReplyDelete-Ajanta
बहुत ही ख़ूबसूरती से आपने इस कविता में सकारात्मक सोच के साथ इस समय की नज़ाकत को भावव्यक्त किया है। अद्भुत
ReplyDeleteWow yaar
ReplyDeletebeautifully written n nice expression of feeling
ReplyDeletevery nice poetry written by our caring Bhabhi now my brother Dinesh plz take care of here feelings...give her proper time n attention....
ReplyDeleteHina, great very nice. You are Sahi mayne me fionaa ki ma ho
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