ज़रूरी है-
बाहर आ खुद से,अपने आप को देखना।
देखते हुए दुनिया को, भीतर मन को टटोलना।
मुस्कुराहट सच्ची है या है दर्द छुपाए?
सब भूल बैठे या, ज़िंदगी से हैं लम्हे चुराए?
टूटी ख़्वाईशों ने क्या दम तोड़ दिया?
या फिर उन ख़्वाबों ने नया मोड़ लिया?
मिला है क्या उद्देश्य जीने का?
जाना सही किनारा इस सफ़ीने का?
पाई है क्या सार्थक राह जीने की ?
या खोज ज़ारी है वजूद के मायने की?
ज़रूरी है-
बाहर आ खुद से, अपने आप को देखना।
खुद को तलाशना, स्वयं को विलोकना!
Kisi ki Manahstithi ki sunder vivechna
ReplyDeleteSo true....zindagi ki bhag daud mai khud ko bhulaye baithe hain,samay rahte khud ko talash lain to achha hai
ReplyDeleteBeautiful!! So true?❤️
ReplyDeleteBahut hi sundar
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