Wanna know

July 4, 2020

श्रीमती ऋषभा करनावट

जीवन के 90 बसंत पूरे करने के उपलक्ष्य पर
( कुछ उनकी जुबानी, कुछ हमारी जुबानी ) 


सोजत सिटी के एक शिक्षित एवं प्रतिष्ठित दंपति श्री राखडमल सा सिंघवी और श्रीमती उमराव कंवर भंडारी के घर दिनांक 4 जुलाई 1930 के दिन एक नन्ही बालिका ने जन्म लिया और प्यार से उसका नाम रखा गया, मैना.

सोजत सिटी के सरकारी हाई स्कूल के प्राचार्य श्री सिंघवी के घर यह चौथी सन्तान थी. जब  प्रथम संतान के रूप मे एक कन्या का जन्म हुआ तब उसका लक्ष्मी के घर आने की भांति स्वागत किया गया और नाम रखा गया, चंचल अर्थात् लक्ष्मी. समाज में पुत्र प्राप्ति की प्राथमिकता उस युग में और भी अधिक थी। जब दूसरी संतान भी कन्या हुई, तो उसका प्यार का नाम रखा गया, आचुकी, अब लक्ष्मी बहुत आ चुकी है। जब तीसरी संतान भी लड़की हुई, तो उसे कहा गया, धापी, पर्याप्त हुआ, अब और लड़की नहीं चाहिए।

मैना, राखड़ मल सा की चतुर्थ संतान थी, और इसका तात्पर्य था कि, अब मैना पक्षी की भांति उड़ जाओ, और भविष्य में पुत्र रत्न की प्राप्ति हो।

ऐसा ही हुआ भी। राखड़ मल सा को पांचवीं संतान एक सुन्दर पुत्र के रूप में प्राप्त हुई, और सर्वत्र आनंद और संतोष की लहर दौड़ गई। लेकिन यह बालक संसार में मात्र 10 माह की वय लेकर आया था।

एक सुशिक्षित एवं जागरूक श्री राखड़ मल सा ने यह तय किया कि वे अपनी सबसे छोटी बेटी को अपना बेटा जैसा ही मानेंगे और वैसे ही लाड प्यार से उसे बड़ा करेंगे। उन्होंने उसका नाम रखा, ऋषभ(बाद में रिषभा)।
रिषभा जब तीन वर्ष की थीं, तब उनकी माता जी को प्रसवोत्तर लकवा हो गया था । चूंकि तीनों बड़ी बहनें स्कूल में शिक्षा प्राप्त करने जाती थीं, इसलिये उनके हिस्से में अपनी बीमार माँ की सेवा आई। इसलिये भी उनकी पढाई लिखाई एक न्यूनतम स्तर पर घर पर रह कर ही हो पाई। लेकिन पिताजी की देख रेख में , बुजुर्गों के संरक्षण में तथा माँ की ममता व सीख के साथ उनका संस्कार जनित लालन पालन हुआ। धर्म, अनुशासन, त्याग, तपस्या और सेवा भाव उन का स्वभाव बन गया।

नन्ही रिषभा जी जब अपने ईर्दगिर्द पडौस के भाई बहनों को खेलते देखतीं थीं तो उनके मन में खुद के भाई होने की इच्छा जागृत होती थी। यह बात उन्होंने अपने पिताजी से साझा की। पिता अपनी पुत्रियों व नन्हीं रिषभा की भावना समझ रहे थे। उन्होंने रिषभा से कहा कि मैं मेरा यह मकान तेरे नाम करना चाहता हूँ, क्योंकि तू सबसे छोटी और मेरे लिए बेटे जैसी है। यदि तुझे एक भाई ला दूंगा तो यह मकान उसे मिलेगा, तुझे नहीं। तुझे भाई चाहिए या ये मकान ?  रिषभा जी ने बिना पल भर की देर किए कहा कि उन्हें भाई चाहिए, मकान नहीं।

अस्तु, राखड़ मल सा ने अपने भतीजे, भँवर लाल को गोद पुत्र ले लिया, जिन्होंने कालांतर में अपनी माता जी, चारों बहनें और उनके परिवार के साथ इतना आत्मीयता के साथ रिश्ते का निर्वाह किया जो कदाचित एक सगा भाई भी नहीं कर पाता। यध्यपि पिताजी ने रिषभा जी के नाम गहने व रोकड़ रुपये एक रिश्तेदार की पेढी पर जमा कर दिये ताकि वक्त जरूरत रिषभा जी के काम आए।

जब रिषभा जी तेरह वर्ष की थीं तब एक दिन अचानक एक भद्र पुरुष, श्री बखतावर मल करनावट, उनसे मिलने उनके घर आ पहुंचे।वस्तुतः, वे अपने मँझले लड़के के लिए बहू की तलाश में थे, और राखड़ मल सा, जोधपुर के दरबार स्कूल में प्राचार्य होने से प्रख्यात थे।
रिषभा जी के अनुसार उस समय वे हतप्रभ रह गईं थीं। न उन्होंने कपड़े ढंग से पहने हुए थे और न ही बाल संवारे हुए थे।

श्री बखतावर मल जी को अपने लड़के के लिए यह लड़की अनायास ही पसंद आगयी। रिषभा जी के पिताजी ने उन्हें समझाने का प्रयास किया कि वह अभी छोटी हैं। पर उन्होंने सोने की एक मुहर रिषभा जी के हाथ में दी और विलंब से शादी करने की बात करते हुए रिश्ता पक्का कर लिया।

रिषभा जी के अनुसार उन्हें आज तक यह बात समझ में नहीं आई कि बखतावर मल सा ने उनमें ऐसा क्या गुण देखा था कि पहली बार में अनायास इतना बड़ा निर्णय ले लिया। दुर्भाग्य वश आकस्मिक हृदयाघात से  बखतावर मल सा असमय काल कवलित हो गए।

इस प्रकार शीघ्र ही रिषभा जी का विवाह महामंदिर के प्रतिष्ठित करनावट परिवार में श्री जसवंत मल सा के साथ वर्ष 1944 में अक्षय तृतीया के दिन संपन्न हुआ। धर्म परायणा एवं मधुर स्वभावी उनकी सास ने बड़े लाड़ प्यार से अपने परिवार में रिषभा जी को समाहित किया। ससुराल पहुंचते ही रिषभा जी ने अपने गहने एवं ससुर जी द्वारा दी गई सोने की मुहर अपनी सास को सुपुर्द की और उनके शब्दों में वे फालतू के जंजाल से मुक्त हो गईं।

श्री बखतावर मल सा के आकस्मिक निधन से घर में वित्तीय संकट की स्थिति आ गई थी। जसवंत मल जी के बड़े भ्राता अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहते थे, अतः उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ कर एक दुकान कर ली। कुछ समय पश्चात ही दुर्घटना वश दुकान में आग लग गई और सामान नष्ट हो गया। लेकिन तभी जसवंत मल सा की जयपुर में एक सरकारी नौकरी लग गई और अपनी माता जी की इच्छा के फलस्वरूप वे जोधपुर से जयपुर प्रस्थान कर गए।

इस समय तक वे चार बच्चों के पिता बन चुके थे। यद्यपि सीमित आय से घर का खर्च एवं जोधपुर स्थित परिवार की जिम्मेदारी उठाना दुष्कर था, परन्तु प्रतिभाशाली जसवंत मल जी की आगे अध्ययन करने की लालसा और पद में आगे बढ़ने की महत्वाकांक्षा में कमी नहीं थी।

ऐसे समय में रिषभा जी अपने पिताजी द्वारा दी गई धन राशि से जसवंत मल जी के पढ़ने एवं बढ़ने में सहायक बनीं और जसवंत मल जी एल एल बी परीक्षा उतीर्ण करने के साथ साथ राजस्थान प्रशासनिक सेवा में भी चयनित हुए।

आरएएस सेवा के दौरान श्री जसवंत मल सा का स्थानांतरण पींडवाडा, चिड़ावा, जैसलमेर जैसे स्थानों पर हुआ, इस दौरान बच्चों की पढ़ाई के लिये रिषभा जी एक मकान लेकर पति से दूर अकेले जोधपुर भी रहीं। लेकिन इस दौरान भी उनका धर्म ध्यान, दान पुण्य,त्याग तपस्या अनवरत चलता रहता था।

वर्ष 1964 में जसवंत मल सा का स्थानांतरण जयपुर हुआ तो दम्पत्ति ने स्थाइ रूप से जयपुर बसने का मानस बना लिया। अतएव, जसवंत मल सा ने बापू नगर में एक सरकारी भूखंड आबंटित करा कर एक मकान बना लिया।

रिषभा जी ने अपने जीवन काल में आईं कई  पारिवारिक आकस्मिक आवश्यकता के समय, हमेशा बड़ा हृदय रखते हुए, अपने पति को सहयोग देने की दृष्टि से अपने पिताजी द्वारा दी गई धनराशि को उपयोग में लेने के लिये कभी संकोच नहीं किया।

श्री जसवंत मल सा के ईमानदारी, कर्म निष्ठा और अनुशासन सहित जीवन से परिवार ने अपने सभी रिश्तेदारों के बीच, समाज में तथा सरकारी क्षेत्र में अपना एक प्रतिष्ठित स्थान बनाया।

श्रीमती रिषभा जी की धार्मिक प्रवृत्ति व धर्म कार्य में उनकी रुचि परिवार व समाज में एक उदाहरण के रूप में स्थापित है। उन्होंने अपने जीवन काल में एक अवसर ऐसा नहीं गंवाया ,जब स्वाध्याय, संत दर्शन, प्रवचन, तपस्या, त्याग, दान को विस्मृत किया हो। अट्ठाई, मास खमण, वर्षी तप जैसी उपलब्धियां उन्होंने प्राप्त की हैं।धर्म कार्य में समाज को भी उनका बड़ा योगदान रहा है। स्थानक व स्कूल में कमरे बनवाना, दया पालना,  छात्रावास में धनराशि उपलब्ध कराना आदि कार्य उनका निरंतर जारी रहता है।

श्री जसवंत मल सा का उनको पूरा सहयोग था। परंतु जब रिषभा जी 58 वर्ष की थीं, तब नियति के अधीन, जसवंत मल सा ने रिषभा जी का साथ छोड़ दिया और वे 12 फरवरी1988 को दिवंगत हो गए। इस गम्भीर आघात के बावजूद वे विचलित नहीं हुई, और उनका धर्म ध्यान ही उनका संबल बना.

उम्र के ढलते पड़ाव पर उन्होंने बहुत विवेक और सौहार्द से अपनी  परिसंपत्तियों का विभाजन कर दिया. उन्होंने  सीख और संदेश दिया  कि सुख पत्थर के घर में नहीं परन्तु स्नेह और परिवार में होता है.

उनके धर्म ध्यान के परिणाम स्वरूप ही दुष्कर परिस्थितियों में भी उनका हाथ हमेशा ऊपर रहा, और ह्रदय से प्रत्येक के लिए हमेशा निस्वार्थ आशिर्वाद बहा. हाल ही में लाल कोठी, जयपुर स्थित स्थानक में उन्होंने एक फिजियोथेरेपी केन्द्र खुलवाया है, जो सुचारू रूप से संचालित हो रहा है।

उन्हें दूसरा आघात तब लगा जब उनके कनिष्ठ पुत्र, महेन्द्र जी, दिनांक 21 फरवरी 2017 के दिन काल कवलित हो गये। इस प्रकार अनेक दुखद घटनाओं व विषम परिस्थितियों के बावजूद अपने पुण्य के बलबूते पर उनका आध्यात्मिक जीवन जीवंत है। संसार मोह माया से विरक्त,अब वे अपना संतमय जीवन व्यतीत कर रही हैं.

आज रिषभा जी अपनी उम्र के  नब्बे वर्ष के पड़ाव पर हैं। और आज भी दिन में आठ सामयिक करना, जैन धर्म की पुस्तकें पढ़ कर बच्चों को धार्मिक कहानियां सुनाना, जाप करना, तपस्या करना, दान दया करना अनवरत जारी है और हम सब के लिए प्रेरणा दायक भी है।

आज भी वे अपने मानसिक रूप से दिव्यांग, पड़ दोहते सौमिल को प्रतिदिन फोन पर मंगलाचरण सुनाती हैं.

श्रीमती रिषभा जी करनावट को उनके 90 बसंत पूरे करने के उपलक्ष्य पर हम उन्हें नमन करते हैं, हार्दिक बधाई देते हैंऔर  उनके अच्छे स्वास्थ्य व दीर्घायु होने की कामना करते हैं। 
साथ ही यह भी प्रार्थना करते हैं कि उनका आशीर्वाद, स्नेह एवं मार्गदर्शन हमें सदा सतत मिलता रहे।




18 comments:

  1. Blessed to have nanisa in our life. Whatever kindness, forgiveness and love for Jainism we have learnt, we have learnt from her.

    ReplyDelete
  2. Very well drafted autobiography of Nanisa. Great effort. We all pray for long life for Nanisa.

    ReplyDelete
  3. आप को अपने धार्मिक,सामाजिक,पारिवारिक एवं कर्त्तव्यनिष्ठ जीवन के ९० साल पूरे करने पर बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएं। हमें आशा तथा पूरा विश्वास है कि आपका १००वा जन्म दिन खूब हर्षोल्लास से मनाएंगे।
    यह आपके अपने संस्कारों और धार्मिक आचरण की ही देन है कि आपने अपने परिवार में पुत्र, पुत्री,बहू, दामाद, पोते, पोती,दोहिते, दोहिती के रूप में असंख्य हीरे जवाहरात संजोकर रखे हैं। ऐक बार फिर भगवान से आपके शांतिपूर्ण और लंबी उम्र की कामना करते हैं।
    पुरुषोत्तम निर्मला लोढ़ा।

    ReplyDelete
  4. जन्मदिवस पर मेरा प्रणाम स्वीकार करें। मैं किन शब्दों से श्रीमती ऋषभा जी के व्यक्तित्व कृतित्व की प्रशंसा करूं। वह एक अमूल्य हस्ती है समाज की। जो रात दिन ईश्वर स्मरण में व जन सेवा में अपना अहोभाग्य समझती है। मैं पूरे परिवार को बधाई व उनके स्वस्थ रहनेकी मंगल कामना करता हूं। उनके द्वारा इसी तरह से समाज सेवा करते रहने के लिए ईश्वर से प्रार्थना करता हूं। विनीत रत्नेश कुमार पोखरना, जयपुर।

    ReplyDelete
  5. Wishing Dadisa a very healthy and blissful life. You continue to be a strong pillar of the family and your autobiography is a live example of your strength and religious power.

    ReplyDelete
  6. Wow excellently drafted the Biography. My all Nanis left she is one and only. She still talks so nicely her thoughts and vision is as clear. Incredible will power. I bow to her for all the love an affections he showered on all of us. Keep showering you blessing on all of us Nani

    ReplyDelete
  7. Highly moved and touched after going through the entire life history of your respected mother dear respected Professor Rashmiji.Convey my heartfelt regards to her.May God bless her and grant her good health for many years.Respects and blessings

    Prof K C Gupta

    ReplyDelete
  8. मम्मी आपको 90 वी जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं आपका स्वास्थ्य अच्छा बना रहे वह आपका आशीर्वाद हमेशा बना रहे यही हमारी कामना है
    हिना तुमने मम्मी की जीवनी को बहुत अच्छे शब्दों से बांधा है

    इंदु

    ReplyDelete
  9. *Nanisa's birthday*



    Nanisa is beautiful and caring,
    Always loving & sharing .

    She offers us yummy treats,
    Along with that she gives us indian sweets.

    She is turning ninety,
    And we are throwing a happy party.

    We wish she stays healthy,
    And she should also stay wealthy.

    We wish your birthday cake as sweet as you ,

    Happy birthday to you.

    TO DEAREST NANISA.


    Written by Alishha(8yrs) ,and Aarav(7yrs), great grand children .

    ReplyDelete
  10. मम्मी, आप के 90 वें जन्म दिवस पर चरण स्पर्श. मुझे, शादी के पहले और बाद में भी, आप के साथ बहुत रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है. आप के निरंतर धर्म ध्यान का aura (छत्र - छाया ) मेरे परिवार पर बना रहा है. आप की जीवन यात्रा हमारे लिए प्रेरणा प्रद रही है. आपका जीवन एक उपन्यास की भांति है, जिसे आपकी दोहित्रि हिना ने सुंदर कहानी के रूप में प्रस्तुत किया है. जन्म दिन की बहुत बधाई. रश्मि.

    ReplyDelete
  11. Happy birthday nanisa..we are lucky to have her in our life.. wishing her the best health and may she always keep showering her love and blessings on us..Hina this is beautifully written for nanisa 👍🙏

    ReplyDelete
  12. 90 Saal ke janmdin ki hardik badhai. Apka aashirwad ham bacho par hamesha raha hai aur isi tarah hamesha Bana rahe.

    ReplyDelete
  13. पूज्यवर मासीसा, आपके नब्बे वर्ष के जन्मदिवस पर मैं सपरिवार आपको हार्दिक शुभ कामनाएँ देता हूं और अत्यंत आनंद का अनुभव करता हूँ और कामना करता हूँ कि आप दीर्घायु हों और हमें जिंदगी के अनुभव से अवगत कराते रहें.

    इस पवित्र प्रसंग पर मैं हमारे बचपन की यादों को नव जागृत करने की इच्छा रखता हूँ.

    वे दिन आज भी याद आते हैं जब आपने मुझे अपने लघु भ्राता की तरह पाला पोसा क्यों कि मैं आप से सात साल छोटा था और आप को बड़ी बहन की तरह आदर और सम्मान देता था. मुझे वे दिन आज भी याद हैं जब आप मेरी गलती पर फटकारते थे पर तुरंत ही इतना प्यार करते थे कि मेरी और आपकी आँखों मे अश्रु धारा बह जाती थी. वे दिन आज भी याद हैं जब आप और मैं साथ बैठ कर खाना खाते तथा आलू और गट्टे की सब्जी को बहुत चाव से खाते थे. प्याज लहसुन व हरी सब्जी न आपको अच्छी लगती थी और न आप मुझे खाने देती थीं. जिसका परिणाम है कि मैं आज तक उन सब्जियों को छुता तक नहीं हूँ. खाना बनाने में आपका कोई ज़वाब नहीं था.

    मुझे वो दिन भी याद है जब आप मुझको अपने साथ लेकर राम लीला दिखाने पास वाले चौक में घर के बाहर ले जाती थीं. कितना आनंद आता था उस लीला को देखने में. जब रात को ग्यारह बजे घर आते थे तो इस की चर्चा करते करते नींद की गोद में सो जाते थे. वो दिन भी आज तक याद है अपने घर की छत पर आपने अपने परिवार के सदस्यों के साथ राम लीला का नाटक प्रस्तुत किया था. मुझे आपने सीता बनाया था. मुनी मल जी मामासा को राम और रिखब चंद जी मामासा को आपने रावन का रोल दिया था.
    रामायण का संगीत व स्टेज का पूरा संचालन आपने किया था. हमारे रिश्तेदार और मोहल्ले वालों से छत पूरी भर गयी थी. आपकी चारों ओर वाह वाह हो रही थी. आपको बचपन से ही रामायण का बहुत शौक था. राधेश्याम रामायण की पंक्तियाँ आपको पूरी पूरी याद थीं. आपके पीछे पीछे मुझे भी रामायण का शौक रहा और मैं भी झूला झुलते रामायण की पंक्तियाँ बोलता था.
    आप बहुत अच्छी राग से गीत गाकर और भजन बोल कर सब का मन हर लेते थे. शादी ब्याह के मौके पर मधुर आवाज में गीत गाकर सब का मन मोह लेते थे. सब आपको बार बार गाने की गुहार करते थे. आप बहुत भाग्यशाली थे. जब जब आपकी याद आती है, आज भी मेरी आँखों में अश्रु धारा बहने लग जाती है. आप के और मेरे हर काम में नाना सा का पूर्ण सहयोग रहता था, और यही हमारी हर सफलता की वज़ह थी.

    यदि मैं भुला नहीं हूं तो आपको चौपड़ खेलने का बहुत शौक था. और आप हमेशा जीत जाते थे. छत पर आप और हम सब छुपा छुपी का खेल भी खेलते थे.

    यादों की तो कोई सीमा नहीं है, और जैसे जैसे पुरानी यादों को दुहराता हूं, तो मुझे कई नई घटनायें याद आती हैं. यदि सब का वर्णन करने लगूं तो वे कभी समाप्त नहीं होंगी. ये सारी बातेँ आपकी शादी के पहले की हैं अतः इन्हें बचपन की यादें कहना ज्यादा अच्छा होगा.
    आपका शुभ आशीर्वाद ही मेरे जीवन का मार्ग प्रदर्शक होगा.

    आपका प्यारा _भानू_ (आपका छोटा भाई ),

    पुनवान मेहता
    (sister's son ).

    ReplyDelete